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Showing posts from July, 2020

रोजगार 'रोटी' नहीं 'शून्य' है .....

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कोरोना  महामारी ने देश में हर किसी को हिला कर रख दिया है , मौत के डर से ज्यादा रोजी-रोटी का डर है . प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कामगार अपना रोजगार छिन जाने के डर से हर रोज अपने बच्चों का चेहरा देख कर डर रहे हैं . कल अगर काम नहीं होगा तो क्या खिलाएंगे? उनके स्कूलों की फीस कैसे जमा करेंगे? बूढ़े माँ- बाप की दवाइयों और इलाज का खर्च कहाँ से लायेंगे ?  अलग अलग राज्यों से लौटे लाखों  मजदूर फिर से वापसी की जुगत लगाने लगे हैं. जो इस उम्मीद में हजारों मील लम्बा सफ़र करके लौटे थे कि अब नहीं जाएँगे परदेश कमाने. कम खायेंगे पर अपने घर में रहेंगे वे अब फिर अपना असबाब बंधने लगे हैं . "नौकरी और चाकरी ,न करी तो का करी " का सवाल  उन लाखों मजदूरों के दिमाग पर छाया हुआ है जो पिछले ही महीने लंबी, कष्टप्रद यात्रा कर घर लौटे थे . एक ही महीने में वे समझ गए कि अब गाँव वैसा नहीं रहा जैसा वे छोड़ गए थे. घर टूट चुके हैं , परिवार बड़े हो चुके हैं और घरों में लोग एक-एक दाना गिन-गिन कर खा रहे हैं .न खेत बचे हैं , न पैसे . जब शहर में रहकर बुरे वक्त के लिए कुछ न बचा सके तो गाँव में छोड़ा हुआ कितना बचेगा ?

No personal comment please!

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" मन किया उनका मुंह नोच लूं" उसने बहुत गुस्से में कहा।   " कहती हैं रंग देखो अपना कौए जैसा और बदन छिपकली से मांग कर लाई हो क्या " और वह लड़की जोर जोर से रोने लगी।  क्या यही है ससुराल का प्यार और बहू बेटी से कम नहीं नारे का सच! ये कुछ सामान्य से ताने हैं जो कमोबेश मध्य वर्गीय परिवारों की लड़कियों को सुनने पड़ते हैं। कभी रंग को लेकर शिकायत तो कभी वज़न को लेकर। लड़की न तो मोटी हो सकती है न पतली, न काली न बहुत गोरी, न कम बोलने वाली न ज्यादा बोलने वाली, न स्मार्ट न भोंदू, न पढी लिखी न अनपढ़। अब अगर वह इनमें से कुछ नहीं हो सकती तो फ़िर क्या हो? हमारे समाज में आप जैसे हैं वैसे स्वीकार्य नहीं होते, आप जैसे नहीं है वैसे होने की आपसे अपेक्षा की जाती है। सिर्फ स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी इन अपेक्षाओं के धरातल पर संतुलन नहीं साध पाते। रंग , शरीर और स्वभाव को लेकर की गई टिप्पणियां बेहद उत्पीड़क होती है। भले ही व्यक्ति इसे आपके सामने नजरअंदाज करने का दिखावा करे लेकिन एकांत मिलने पर अपने आप को दूसरों की नज़र से नापता है। उसके अंदर कमतरी की भावना आने लगती है, वह लोगों के सामने जाने

Mask, Marriage , Lock down

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कल जून 2020 के अंतिम दिन झारखंडमें तीरंदाजी के दो धनुर्धरों ने शादी की । दीपिका कुमारी और अतनु दास। दोनो बचपन से साथ में तीरंदाजी सीख रहे थे, वक्त के साथ उनका प्रेम परवान चढ़ा और अंततः शादी के पवित्र बंधन ने दोनो को जीवन भर के लिए साथ कर दिया।  यह तो थी दीपिका कुमारी की शादी की बात लेकिन इस शादी में जो सबसे अहम बात थी वह थी मास्क पहनने की अनिवार्यता और इसके लिए विशेष सुरक्षा इंतजाम। Kovid- 19 के दौर में भारतीय परम्परागत विवाह का इंतजाम और महामारी से बचाव के लिए अपनाए गए पुख्ता तौर तरीके। हालांकि इस शादी के बाद अधिक मेहमानों को इकट्ठा करने और सामाजिक दूरी न बना कर रखने के कारण सरकार द्वारा नोटिस जारी किया गया है। परन्तु यदि हम लॉक डाउन से पहले की स्थितियों से तुलना करें तो क्या इस तरह पहले किसी विवाह में स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इतनी तैयारी की गई होगी और कम से कम मेहमानों की उपस्थिति में शादी जैसे महत्तवपूर्ण आयोजन के बारे में सोचा गया होगा। शायद नहीं जबकि विवाह स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण तो नहीं है। लोग स्वस्थ होंगे तभी विवाह जैसे आयोजन उत्सव में बदल पाएंगे। तो इस विषय पर हम क्यों