No personal comment please!
" मन किया उनका मुंह नोच लूं" उसने बहुत गुस्से में कहा। " कहती हैं रंग देखो अपना कौए जैसा और बदन छिपकली से मांग कर लाई हो क्या " और वह लड़की जोर जोर से रोने लगी।
क्या यही है ससुराल का प्यार और बहू बेटी से कम नहीं नारे का सच!
ये कुछ सामान्य से ताने हैं जो कमोबेश मध्य वर्गीय परिवारों की लड़कियों को सुनने पड़ते हैं। कभी रंग को लेकर शिकायत तो कभी वज़न को लेकर। लड़की न तो मोटी हो सकती है न पतली, न काली न बहुत गोरी, न कम बोलने वाली न ज्यादा बोलने वाली, न स्मार्ट न भोंदू, न पढी लिखी न अनपढ़। अब अगर वह इनमें से कुछ नहीं हो सकती तो फ़िर क्या हो?
हमारे समाज में आप जैसे हैं वैसे स्वीकार्य नहीं होते, आप जैसे नहीं है वैसे होने की आपसे अपेक्षा की जाती है। सिर्फ स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी इन अपेक्षाओं के धरातल पर संतुलन नहीं साध पाते।
रंग , शरीर और स्वभाव को लेकर की गई टिप्पणियां बेहद उत्पीड़क होती है। भले ही व्यक्ति इसे आपके सामने नजरअंदाज करने का दिखावा करे लेकिन एकांत मिलने पर अपने आप को दूसरों की नज़र से नापता है। उसके अंदर कमतरी की भावना आने लगती है, वह लोगों के सामने जाने से डरने लगता है, स्वयं के रंग , वज़न सामाजिक स्थिति को लेकर इतना सतर्क हो जाता है कि धीरे - धीरे उसके अंदर हताशा या निराशा जन्म ले लेती है और शुरू होता है अवसाद का सिलसिला। सिर्फ एक बेकार, छोटी सी बात सामने वाले पर क्या असर करेगी इसका हमें अंदाज़ा भी नहीं होता।
न जाने व्यक्ति के अंदर परफेक्ट दिखने और होने की चाहत इतनी ज्यादा क्यों होती है? हम या हमारा समाज बचपन से हमें सहज होना क्यों नहीं सिखाता या अन्य व्यक्ति को उसी तरह से स्वीकार करना क्यों नहीं सिखाता जैसा वह है?
इस सभ्य समाज में व्यक्तिगत आक्षेप करने के बजाय व्यक्तिगत हौंसला अफजाई होनी चाहिए। जिससे मिलें उससे उसके आंतरिक गुणों के बारे में बात करें या उसकी कोशिशों, सफलताओं की बात करे जो उसने अर्जित किया है। रंग, जाति, धर्म, या शारीरिक बनावट की बात करने का क्या औचित्य है जैसा होने में उस व्यक्ति का कोई योगदान ही न हो।
#Aparna Bajpayee
अफ़सोस तो इस बात का कि इसके लिए कुछ किया भी नहीं जा सकता. इस ब्लॉग के माध्यम से अच्छी शुरुआत की है.
ReplyDeleteशुक्रिया प्रिय
DeleteVery well written Aparna, signifies the real life experience of us and am sure every one at some point might have faced it..Let us teach our children neither to behave in such a way neither to tolerate such behaviours..... all the best.... awaiting to read your next blog
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