रोजगार 'रोटी' नहीं 'शून्य' है .....
कोरोना महामारी ने देश में हर किसी को हिला कर रख दिया है , मौत के डर से ज्यादा रोजी-रोटी का डर है . प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कामगार अपना रोजगार छिन जाने के डर से हर रोज अपने बच्चों का चेहरा देख कर डर रहे हैं . कल अगर काम नहीं होगा तो क्या खिलाएंगे? उनके स्कूलों की फीस कैसे जमा करेंगे? बूढ़े माँ- बाप की दवाइयों और इलाज का खर्च कहाँ से लायेंगे ? अलग अलग राज्यों से लौटे लाखों मजदूर फिर से वापसी की जुगत लगाने लगे हैं. जो इस उम्मीद में हजारों मील लम्बा सफ़र करके लौटे थे कि अब नहीं जाएँगे परदेश कमाने. कम खायेंगे पर अपने घर में रहेंगे वे अब फिर अपना असबाब बंधने लगे हैं . "नौकरी और चाकरी ,न करी तो का करी " का सवाल उन लाखों मजदूरों के दिमाग पर छाया हुआ है जो पिछले ही महीने लंबी, कष्टप्रद यात्रा कर घर लौटे थे . एक ही महीने में वे समझ गए कि अब गाँव वैसा नहीं रहा जैसा वे छोड़ गए थे. घर टूट चुके हैं , परिवार बड़े हो चुके हैं और घरों में लोग एक-एक दाना गिन-गिन कर खा रहे हैं .न खेत बचे हैं , न पैसे . जब शहर में रहकर बुरे वक्त के लिए कुछ न बचा सके तो गाँव में छोड़ा हुआ कितना बचेगा ?