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Lock down के बाद जीवन लौट रहा है पटरी पर
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कोरोना की दूसरी लहर के बाद आई है एक अच्छी ख़बर। जन जीवन वापस पटरी पर आ रहा है। बाज़ारों में भी रौनक दिखने लगी है। पार्क जो कि लंबे समय से बंद थे अब खुल रहे हैं। घरों में कैद बच्चों को चारदीवारी से बाहर निकलने का मौका मिला है। कोरोना से बचाव के नियमानुसार लोगों को पार्क में प्रवेश दिया जा रहा है। विधिवत पहचान पत्र और मास्क की जांच के बाद ही किसी भी पार्क में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है। पार्क के अंदर भी लोगों में उचित दूरी बनी रहे इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है। किसी भी राइड पर दो लोगों को एक साथ या बहुत नजदीक नहीं बैठाया जा रहा है। जमशेदपुर का हृदयस्थल जुबली पार्क मॉर्निंग वाकर्स के लिए खुल गया है।लेकिन जुबली पार्क का चिल्ड्रेन्स कार्नर के गेट पर अब भी ताला लटक रहा है जो बच्चों के चेहरे पर मायूसी ले आता है। यूं तो nicco पार्क खुल गया है लेकिन उसका प्रवेश शुल्क आम अभिभावकों की जेब के लिए बहुत भारी है। रुपये 150/व्यक्ति खर्च कर सामान्य आमदनी वाले माता-पिता बच्चों के मात्र कुछ देर के मनोरंजन के लिए खर्च करने में हिचकिचाते हैं और बच्चों को चुपचाप बाहर से गेट देखकर ही लौट जाना पड़ता है। पार
झटपट पोषण सबके लिए #Fussy Eater , #childNutrition, #Vitamin
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आजकल छोटे बच्चों को खाना खिलाना आसान नहीं। ऐसे में घर पर उपलब्ध सामग्री से ही पौष्टिक खाना कैसे बनाया जाय और अपने छोटे छोटे बच्चों के लिए कैसे उसे फेवरेट किया जाय यह आज माओं के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है। आज मैंने अपनी रसोई में एक प्रयोग किया और मेरी 6 साल की बेटी जो किसी भी सब्जी को हांथ नहीं लगाना चाहती उसे सारी सब्जियां खिलाई वह भी बिना किसी मुश्किल के। तो दोस्तों मैं आपके साथ रेसिपी शेयर कर रही हूं, आप चाहें तो आप भी अपने बच्चे की खुराक को पौष्टिक बना सकती हैं और अपने बच्चे को प्यार से खिला सकती हैं। घर में उपलब्ध सभी सब्जियों को धो कर थोड़ी थोड़ी मात्रा में काट लें । सब्जियों को कुकर में थोड़ा सा पानी और एक चुटकी नमक डाल कर बॉयल कर लें। सभी सब्जियों को उबाले गए पानी में ही अच्छी तरह मैश कर लें। अब इसी वेजेटेबल सूप से आंटा गूंथ लें । आंटे को गूंथने से पहले उसमें , घी, अजवाइन, कलौंजी, अदरक लहसुन का पेस्ट, हरी मिर्च ( अगर बच्चा तीखा नहीं खाता है तो न लें), थोड़ा सा नमक डाल कर डॉ बना लें और उसे थोड़ी देर के लिए रख दें। अब इस डॉ से मन चाहे शेप में पराठा, पूरी, रोटी कुछ भी बना कर घर में
रोजगार 'रोटी' नहीं 'शून्य' है .....
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कोरोना महामारी ने देश में हर किसी को हिला कर रख दिया है , मौत के डर से ज्यादा रोजी-रोटी का डर है . प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कामगार अपना रोजगार छिन जाने के डर से हर रोज अपने बच्चों का चेहरा देख कर डर रहे हैं . कल अगर काम नहीं होगा तो क्या खिलाएंगे? उनके स्कूलों की फीस कैसे जमा करेंगे? बूढ़े माँ- बाप की दवाइयों और इलाज का खर्च कहाँ से लायेंगे ? अलग अलग राज्यों से लौटे लाखों मजदूर फिर से वापसी की जुगत लगाने लगे हैं. जो इस उम्मीद में हजारों मील लम्बा सफ़र करके लौटे थे कि अब नहीं जाएँगे परदेश कमाने. कम खायेंगे पर अपने घर में रहेंगे वे अब फिर अपना असबाब बंधने लगे हैं . "नौकरी और चाकरी ,न करी तो का करी " का सवाल उन लाखों मजदूरों के दिमाग पर छाया हुआ है जो पिछले ही महीने लंबी, कष्टप्रद यात्रा कर घर लौटे थे . एक ही महीने में वे समझ गए कि अब गाँव वैसा नहीं रहा जैसा वे छोड़ गए थे. घर टूट चुके हैं , परिवार बड़े हो चुके हैं और घरों में लोग एक-एक दाना गिन-गिन कर खा रहे हैं .न खेत बचे हैं , न पैसे . जब शहर में रहकर बुरे वक्त के लिए कुछ न बचा सके तो गाँव में छोड़ा हुआ कितना बचेगा ?
No personal comment please!
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" मन किया उनका मुंह नोच लूं" उसने बहुत गुस्से में कहा। " कहती हैं रंग देखो अपना कौए जैसा और बदन छिपकली से मांग कर लाई हो क्या " और वह लड़की जोर जोर से रोने लगी। क्या यही है ससुराल का प्यार और बहू बेटी से कम नहीं नारे का सच! ये कुछ सामान्य से ताने हैं जो कमोबेश मध्य वर्गीय परिवारों की लड़कियों को सुनने पड़ते हैं। कभी रंग को लेकर शिकायत तो कभी वज़न को लेकर। लड़की न तो मोटी हो सकती है न पतली, न काली न बहुत गोरी, न कम बोलने वाली न ज्यादा बोलने वाली, न स्मार्ट न भोंदू, न पढी लिखी न अनपढ़। अब अगर वह इनमें से कुछ नहीं हो सकती तो फ़िर क्या हो? हमारे समाज में आप जैसे हैं वैसे स्वीकार्य नहीं होते, आप जैसे नहीं है वैसे होने की आपसे अपेक्षा की जाती है। सिर्फ स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी इन अपेक्षाओं के धरातल पर संतुलन नहीं साध पाते। रंग , शरीर और स्वभाव को लेकर की गई टिप्पणियां बेहद उत्पीड़क होती है। भले ही व्यक्ति इसे आपके सामने नजरअंदाज करने का दिखावा करे लेकिन एकांत मिलने पर अपने आप को दूसरों की नज़र से नापता है। उसके अंदर कमतरी की भावना आने लगती है, वह लोगों के सामने जाने
Mask, Marriage , Lock down
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कल जून 2020 के अंतिम दिन झारखंडमें तीरंदाजी के दो धनुर्धरों ने शादी की । दीपिका कुमारी और अतनु दास। दोनो बचपन से साथ में तीरंदाजी सीख रहे थे, वक्त के साथ उनका प्रेम परवान चढ़ा और अंततः शादी के पवित्र बंधन ने दोनो को जीवन भर के लिए साथ कर दिया। यह तो थी दीपिका कुमारी की शादी की बात लेकिन इस शादी में जो सबसे अहम बात थी वह थी मास्क पहनने की अनिवार्यता और इसके लिए विशेष सुरक्षा इंतजाम। Kovid- 19 के दौर में भारतीय परम्परागत विवाह का इंतजाम और महामारी से बचाव के लिए अपनाए गए पुख्ता तौर तरीके। हालांकि इस शादी के बाद अधिक मेहमानों को इकट्ठा करने और सामाजिक दूरी न बना कर रखने के कारण सरकार द्वारा नोटिस जारी किया गया है। परन्तु यदि हम लॉक डाउन से पहले की स्थितियों से तुलना करें तो क्या इस तरह पहले किसी विवाह में स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इतनी तैयारी की गई होगी और कम से कम मेहमानों की उपस्थिति में शादी जैसे महत्तवपूर्ण आयोजन के बारे में सोचा गया होगा। शायद नहीं जबकि विवाह स्वास्थ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण तो नहीं है। लोग स्वस्थ होंगे तभी विवाह जैसे आयोजन उत्सव में बदल पाएंगे। तो इस विषय पर हम क्यों
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जब कोई आपसे कुछ कहता है तो आपके तन के साथ ही आपका मन भी उससे प्रभावित होता है। आप कुछ ऐसा सुनते हैं या बात करते हैं जो किसी और के बारे में है तो आप दोनो पर उन बातों का असर होता है और जिसके बारे में बातें हो रही होती हैं उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मानवीय स्वभाव.... हर इंसान को निंदारस में मज़ा आता है और दूसरों की निंदा में घंटों बिता देते हैं बिना यह सोचे कि मन पर इसका कितना बुरा असर हो रहा होता है। इससे हमारे मन में दूसरों के प्रति पूर्वाग्रह बन जाता है और हम उस व्यक्ति को उस नजर से देखने लगते हैं जो किसी और ने हमें दिखाई होती है. हम अपनी स्वतंत्र राय नहीं बना पाते. हमारे मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं जिन पर हमारा कोई वश नहीं होता. हम समझ नहीं पाते कि सही क्या है और गलत क्या है. इतना ही नहीं कभी कभी अगर कोई हमसे कह देता है कि अमुक व्यक्ति आपके बारे में यह कह रहा था तो हम उसे सच मान कर दुश्मनी पाल लेते हैं जो किसी के लिए भी हितकर नहीं होती। इसलिए अगली बार अगर कोई आप के साथ किसी की निंदा करे तो वहीं सतर्क हो जाइए, वहां से हट जाईए या बातों का रुख मोड़ दीजिए नहीं तो निंदा से म