Fit your thoughts
जब कोई आपसे कुछ कहता है तो आपके तन के साथ ही आपका मन भी उससे प्रभावित होता है। आप कुछ ऐसा सुनते हैं या बात करते हैं जो किसी और के बारे में है तो आप दोनो पर उन बातों का असर होता है और जिसके बारे में बातें हो रही होती हैं उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मानवीय स्वभाव.... हर इंसान को निंदारस में मज़ा आता है और दूसरों की निंदा में घंटों बिता देते हैं बिना यह सोचे कि मन पर इसका कितना बुरा असर हो रहा होता है।
इससे हमारे मन में दूसरों के प्रति पूर्वाग्रह बन जाता है और हम उस व्यक्ति को उस नजर से देखने लगते हैं जो किसी और ने हमें दिखाई होती है.
हम अपनी स्वतंत्र राय नहीं बना पाते.
हमारे मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं जिन पर हमारा कोई वश नहीं होता.
हम समझ नहीं पाते कि सही क्या है और गलत क्या है.
इतना ही नहीं कभी कभी अगर कोई हमसे कह देता है कि अमुक व्यक्ति आपके बारे में यह कह रहा था तो हम उसे सच मान कर दुश्मनी पाल लेते हैं जो किसी के लिए भी हितकर नहीं होती।
इसलिए अगली बार अगर कोई आप के साथ किसी की निंदा करे तो वहीं सतर्क हो जाइए, वहां से हट जाईए या बातों का रुख मोड़ दीजिए नहीं तो निंदा से मिलने वाला रस आपके विचारों को अनफिट कर देगा।
बिल्कुल दुरुस्त फरमाया!
ReplyDeleteदेखिए, अंग्रेज़ी में एक कहावत है, "If Dick tells Harry something about John, Dick speaks less about John and more about Dick!"
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